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उसका दोष क्या है भाग - 1 15 पार्ट सीरीज



                    
          15 पार्ट सीरीज    
       उसका दोष क्या है

   डिस्क्लेमर - :  यह कथा पूर्णतया काल्पनिक है यदि किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई घटनाक्रम मिले इसकी जिम्मेवारी लेखक की नहीं है।    
             
            उसका दोष क्या है
                       कहानी

   मैं यानी लेखिका ज्योति वन्य प्रांत से घिरे राज्य झारखण्ड के राँची की निवासी हूँ। मैं और मेरा पूरा परिवार राँची शहर में स्थाई रूप से रहता है। झारखण्ड के रामगढ़ जिले के एक शासकीय कार्यालय में कार्यरत ह। बच्चे और पूरे परिवार के राँची में रहने के कारण मैं प्रतिदिन बस से रामगढ़ आना-जाना करती थी। जिला के विभिन्न प्रखंडों में मेरा स्थानांतरण होता रहता था। परंतु परिवार राँची में रहने के कारण राँची से ही आना-जाना करती थी मैं।
आने जाने के क्रम में तेरी भेंट कई लोगों से हुई।इनमें कुछ लोगों सेसामान्य बातचीत हुई,और कई घनिष्ठ मित्र भी बने। इन्हीं में से एक थीं विद्या। जिनके साथ बीती कुछ घटनाओं ने मुझे यह कथा लिखने पर मजबूर किया। 


    यह बात उस समय की है जब मैं रामगढ़ जिला के एक प्रखंड में पदस्थापित थी और अपने निवास से कार्यालय जाने के लिए बस के द्वारा  का सफर करती थी। आने जाने के क्रम में बहुत-सी  महिला कर्मियों से मेरी भेंट हुई। उनसे दोस्ती भी हो गई। कभी-कभी घर आना जाना भी हो जाता है। मैं अधिकतर व्यस्त रहती थी,और कुछ रिजर्व स्वभाव भी है मेरा। इसलिए मैं बातें तो सब से कर लेती,दोस्ती भी कर लेती, परन्तु व्यक्तिगत बातें मैं पूछती नहीं थी किसीसे। यदि कोई स्वयँ कुछ बतला दे तो उसे मैं सुन लेती,परंतु सुनने के बाद फिर कभी उसकी चर्चा भी नहीं करती।



    मेरे साथ एक स्कूल की शिक्षिका भी जाती थीं,वह लगभग मेरी ही उम्र (शायद मुझसे आठ-दस वर्ष अधिक ही होगी) की थीं, और हम लोग आते समय अधिकतर एक ही बस से आते।वह विवाहिता थीं परंतु उनके बच्चे एक भी नहीं थे। ये ही हैं मेरी इस कहानी की नायिका "विद्या"।



      एक साथ सफर करते उनसे मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी। उनका स्टॉपेज मेरे स्टॉपेज के बहुत आगे था इसलिए स्कूल से जल्दी छुट्टी होने के बाद भी उसी बस में मिलती थीं,क्योंकि उनके बस में चढ़ने के बाद और मेरे बस में चढ़ने के बीच का समय लगभग एक घंटा का होता था।



रोज का मिलना हो जाता हमारा। हां शनिवार को वह जल्दी जाती थीं। एक दिन मैंने देखा उनकी गोद में एक छोटा बच्चा, तो मैंने उनसे पूछा -  
     "यह बच्चा किसका है"?



उन्होंने बहुत निश्चिंतता से कहा -  "मेरा"।


मुझे आश्चर्य हुआ परंतु मैं खामोश रह गई।  कारण बस वही मेरी आदत किसी के व्यक्तिगत मामले में नहीं पड़ने की। फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने स्वयं ही कहा - 
   "मैं मां नहीं बन सकती थी तो मेरी मां ने यह बच्चा ला कर दिया है। इसकी मां की मृत्यु हो गई है और उस को पालने वाला कोई नहीं था,इसलिए माँ ने ले लिया और मुझे दे दिया"।


यह सुनकर मैंने मुबारकबाद दिया और कहा -   "आपने बहुत अच्छा किया लेकिन इसे विधिवत गोद ले लीजिए, इससे आगे परेशानी नहीं होगी | इसकी मां नहीं है, लेकिन पिता तो होगा, कहीं ऐसा न हो वो आगे आपको परेशान करें"।



  विद्या ने बहुत शांति से कहा  -  "नहीं ऐसा नहीं होगा, हमारी रिश्तेदारी में ही है। और इतना ही नहीं बेटा के साथ इसकी एक बहन भी इसके साथ ही आई है। इसका पिता बच्चों को संभालने में सक्षम नहीं था, और परिवार में कोई नहीं था जो बच्चों को देखता तो बेटा हम ने गोद ले लिया परंतु साथ में बेटी को भी उन्होंने दे दिया संभालने के लिए। समझिये एक तरह से बेटी भी गोद ले लिया है। बेटी भी हमारी ही हो गई"।


  मैं मुस्कुराई - "वाह!यह तो बहुत अच्छी बात है! यह तो वही कहावत वाली बात हो गई  एक के साथ एक फ्री ऑफर"!


वह भी खिलखिला कर हंस पड़ी और कहा  -  "यह तो मजेदार चुटकुला हो गया"।



 विद्या की इस कहानी या फिर कहा जाए तो मेरी इस रचना की नींव यही घटना थी । इसके बाद तो मैंने सदा उन्हें बच्चे के साथ ही देखना प्रारंभ किया। वे अपने बच्चे के साथ ही आती जाती थीं। इसके बाद मैंने उन्हें कभी अकेले नहीं देखा। विद्या हमेशा अपने बच्चे के साथ दिखतीं l एक बार मैंने पूछ भी दिया - "बच्चे के साथ स्कूल में पढ़ाती कैसे हैं"?



   उन्होंने कहा  -  "वहां एक आया मैंने पूरे दिन के लिए रख ली है, जो बस के पास मेरे बस से उतरते ही बच्चे को ले लेती है,और वापसी में बस स्टॉप पर छोड़ने भी आती है। पूरा दिन वह बच्चे के साथ रहती है, इसलिए मुझे कोई परेशानी नहीं होती है; मैं आराम से क्लास लेती हूं"।



   वास्तव में इसके बाद मैंने भी कई बार अपने परिचित कई लोगों से सुना एक साधारण सी साफ-सुथरे कपड़े पहनी हुई महिला बस स्टॉप पर विद्या की प्रतीक्षा करती हुई मिलती है,जो बस के रुकते ही बस के दरवाजे पर आ जाती है और विद्या के दिखने पर विद्या के हाथ से बच्चे को ले लेती है । वापसी में वह उसे बच्चे को लिए बस तक विद्या को छोड़ने आती है।शायद उसे विद्या ने अपने बच्चे के लिए आया बना कर रखा है। विद्या एक प्रखंड स्तरीय विद्यालय में शिक्षिका थी, इसलिए उस प्रखंड में जाने वाले मेरे विभागीय अधिकतर सहयोगी उसके परिचित थे।उन्हीं से विद्या के विषय में अक्सर यह सब समाचार मिलता रहता था– बिन मांगे बिन पूछे, बस सामान्य बातचीत के क्रम में। मैं भी बिना उत्सुकता जताए सब कुछ सुन लेती लेकिन भीतर से मैं विद्या की यह बातें सुनकर प्रसन्न भी हो रही थी,चलो उसका नन्हा बच्चा सदा उसके साथ रहता है। विद्या उस बच्चे पर अपनी ममता लुटाती रहती और बच्चा भी उससे काफी हिल-मिल गया था। वह तो उसे अपनी वास्तविक माँ ही समझता था। विद्या एक दो बार किन्ही विशेष अवसर पर  मेरे घर भी आई थी अपने बेटे और उसकी बड़ी बहन अर्थात अपने उन दोनों बच्चों को लेकर। उसने अपने उन दोनों बच्चों को मेरा परिचय मौसी कहकर ही करवाया था। दोनों बच्चे भी मुझे बहुत प्यार से मौसी कहते। विद्या के पति भी मुझसे और मेरे परिवार से काफी घुलमिल गए थे। उनका अपना निजी व्यवसाय था,जिससे वह अपने परिवार के लिए आवश्यकता पड़ने पर पूरा समय निकालते थे।
   कहानी जारी है।



                               क्रमशः
   निर्मला कर्ण



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6 Comments

Abhinav ji

08-Sep-2023 09:31 AM

Nice

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Mahendra Bhatt

29-Jun-2023 09:05 PM

👌

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